पं. उमाशंकर शुक्ल जी "अध्यक्ष" कार्यकाल - सन् : 1980-1981 तक
परिचय
पं. उमाशंकर शुक्ल जी का जन्म 19 फ़रवरी वर्ष 1911 में खड़गपुर में हुआ। बांकुरा मेडिकल कॉलेज में एम.बी.बी.एस. की द्वितीय वर्ष की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई आर्थिक कठिनाई के कारण नहीं कर पाए। उसके बाद यूरोपियन बच्चों के इंडियन रेलवे हाई स्कूल, खड़गपुर में अध्यापन कार्य किया। पं. उमाशंकर शुक्ल, पं. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के अनुयायी थे। प्रखर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। गांधी जी के नमक आन्दोलन व 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में उन्होंने भाग लिया, वे कई बार जेल भी गये। छत्तीसगढ़ में श्री शुक्ल ने अपने मित्र पं. भगवतीचरण शुक्ल (पं. रविशंकर शुक्ल के पुत्र) के साथ अंग्रेजों के विरूद्ध आन्दोलन में भाग लिया। जब पं. भगवतीचरण शुक्ल व पं. उमाशंकर शुक्ल को रायपुर जेल में रखा गया था, उसी अवधि में तत्कालीन जेलर पाध्ये ने जेल में बंद मालवीय रोड वाले पं. कन्हैया लाल अवस्थी के भोजन में काँच का पीसा चूरा मिला दिया था तब उमाशंकर जी शुक्ल ने इसका विरोध किया था। उसी समय जेल में बंद बेमेतरा तहसील के अंधियार खोर के मालगुजार व क्रांतिकारी पं. भगवती प्रसाद मिश्र भी जेल में थे। उन्होंने पं. उमाशंकर शुक्ल को देखा और अपनी बेटी कमला का विवाह उनसे तय कर दिया। अंग्रेजों ने भगवती प्रसाद मिश्र को कन्यादान के लिए जेल से बाहर आने के लिए अनुमति नहीं दी। तब महासमुंद के महान संत यति यतन लाल ने भगवती प्रसाद मिश्र की पुत्री का कन्यादान कर पं. उमाशंकर शुक्ल से विवाह कराया। स्व. महंत श्री लक्ष्मीनारायण दास जी ने विवाह में भाई की भूमिका निभाई। श्री शुक्ल उत्तर भारतीय ब्राह्मण समाज के संगठन-कर्ता रहे हैं। ब्राह्मण समाज खड़गपुर के अध्यक्ष तथा लड़ाई के जमाने में खड़गपुर टाऊन गार्ड के अध्यक्ष भी रहे। आप धर्म-परायण व्यक्ति थे। वे स्वामी करपात्री जी महाराज के प्रिय शिष्य बने। पं. शुक्ल ने वर्ष 1965 में 3 दिनों का धर्माचार्य सम्मेलन दूधाधारी मठ में कराया। इस धर्माचार्य सम्मेलन में स्वामी करपात्री जी महाराज तथा चारों पीठों के शंकराचार्य शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में हजारों लोगों ने भोजन किया। आपने धर्माचार्य सम्मेलन का पूर्ण व्यय स्वयं वहन किया। आपने रेलवे के बड़े ठेकेदार के रूप में खड़गपुर, नागपुर, बिलासपुर में लम्बे समय तक कार्य किया। तत्कालीन रेल मंत्रियों से इनके संपर्क रहे। पं. द्वारिका प्रसाद मिश्र, पं. रविशंकर शुक्ल आदि से इनके घनिष्ठ संबंध थे। आपका निधन दिनांक 28 मई 1988 को हुआ। आपने बेहद गतिशील व यशस्वी जीवन जिया। कान्यकुब्ज सभा-शिक्षा मंडल संस्था के आशीर्वाद भवन के कक्ष क्रमांक - 5 का नाम पं. उमाशंकर शुक्ल जी की स्मृति में रखा गया है। *********