स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पं. शंभूदयाल शुक्ल "अध्यक्ष" कार्यकाल - सन् : 1962-1964 तक
परिचय
पं. शंभूदयाल जी शुक्ल का जन्म 26 फरवरी 1892 में राजनांदगांव में हुआ था। आप पर अपने चाचा पं. रविशंकर शुक्ल (कक्काजी) का गहरा प्रभाव था। वे कक्का जी को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानते थे। आजादी की लड़ाई में कक्काजी के व्यस्त रहने के कारण उनके पूरे परिवार को बड़ी जिम्मेदारी से सम्हाले रखा। पं. शुक्ल जी ने स्वतंत्रता संग्राम में भूमिगत रहकर सेनानियों की मदद की, जैसे- उनके रूकने, आने-जाने, खाने-पीने की व्यवस्था, प्रचार-प्रसार में सहयोग आदि, इसी कारण से आजादी के काफी समय बाद स्थानीय प्रशासन ने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की उपाधि प्रदान की। आपने ब्राह्मण समाज के लोगों की सभी प्रकार से सेवा की। कई लोगों को नौकरी में लगाया, बहुतों को स्वरोजगार स्थापना में मदद की, अनेक जरूरतमंद कन्याओं का विवाह सम्पन्न कराया, समाज में आवश्यकता अनुसार लोगों के भरण-पोषण में भी वे गुप्त रूप से सहयोग करते रहे। आपने कई व्यवसाय किए। प्रभात टाकीज, पेट्रोल पम्प, मध्य प्रदेश ट्रांसपोर्ट कम्पनी में भागीदारी की। आप राजनीति में प्रत्यक्ष भाग न लेकर समाज सेवा में संलग्न रहे। रायपुर में जैतू साव मठ, भागीरथी मंदिर आदि धार्मिक संस्थाओं में ट्रस्टी रहे। वामनराव लाखे शाला एवं बद्रीप्रसाद शिक्षण समितियों में प्रमुख सदस्य रहे। इन संस्थाओं को बढ़ाने का कार्य किया। राजातालाब में आवासीय कालोनी शुक्ला कालोनी, रविनगर हाऊसिंग सोसायटी भी बनायी। आपने गाँधीवादी जीवनशैली अपनाई और और जीवन भर खादी के कपड़े ही धारण किये। कान्यकुब्ज सभा रायपुर को वर्ष 1943 से 15 वर्षों तक सचिव एवं 1962-64 तक दो वर्षों तक अध्यक्ष के रूप में आपका मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त होता रहा है। समाज में उन्हें दादाजी के नाम से संबोधित किया जाता था। आपने स्वदेशी, स्वावलम्बी एवं मितव्ययिता की गांधी जीवन शैली को आत्मसात करते हुए, स्वस्थ शांतिपूर्ण एवं दीर्घकालीन जीवन जिया है। वे अपने जीवनकाल में कभी भी गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े एवं 103 वर्ष की आयु में 9 दिसम्बर 1994 को उनका निधन हुआ उनके जीवन शैली हम सभी के लिये प्रेरणा दायक है। कान्यकुब्ज सभा-शिक्षा मंडल संस्था के आशीर्वाद भवन स्थित कार्यालय कक्ष का नाम पं. शम्भूदयाल शुक्ल जी की स्मृति में रखा गया है। *********